
nazm kaise likhen | नज़्म कैसे लिखें? nazm kaise likhen
Hello dosto
Nazm kaise likhen ? नज़्म कैसे लिखें?
नज़्म उर्दू का एक ऐसा format है, जिसमें दुनिया की सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरती मौजूद होती है। एक नज़्म को जब सादगी और मासूमियत के साथ अच्छे लफ्ज़ों से लिखा जाए तो किसी के भी दिल को चीर जाए और किसी के भी दिल में अपना मकाम बना ले। वैसे भी नज़्म की बात आते है सब पहले गुलज़ार साहब को याद आती है कितने ख़ूब तरीके से उर्दू के लफ्जो को पिरोते हैं जैसे कोई तस्बी हो हाथ में और हम पढ़े जा रहे बस पढ़े जा रहे। तो क्यूं ना हम भी ख़ूबसूरत नज़म लिखने की कोशिश करें!
तो चलिए शुरू करें।
नज़्म वैसे तो काफी तरह की होती है मगर हम basic level पे बात करते हैं! नज़्म को दो तरीके से लिख सकते है और दिलों पे राज़ कर सकते हैं, मगर इतना जान लीजिए नज़्म सिर्फ किसी एक ख़्याल किसी एक विषय एक ही टॉपिक पे लिखी जाती है। आप उसमें ग़ज़ल की तरह कई ख्यालों को नहीं बयान कर सकते है जैसे अगर आप अपने हाल पे लिख रहे तो उस से है जुड़ी बातें होनी चाहिए, किसी और का तो किसी और कि बात।
1 तरीक़ा
जिस नज़्म में काफिया होता है! जिसकी सभी लाइन्स में काफिया होता है मगर इसमें काफिया बदलने की आजादी होती है जो कि ग़ज़ल में नहीं होती ग़ज़ल में एक जैसे लफ़्ज़ रखने होते है काफिया में मगर हम नज़्म के हर शेर में काफिया बदल सकते हैं! हालाकि काफिया और रदीफ होता होता है वो भी बता देता हूं।
काफिया (kaafiya)
काफिये का मतलब होता है (rhyming) same sound वाले word’s वह लफ्ज़ जो एक है तरह की आवाज़ पे खत्म होते हैं उन्हें कहते हैं काफिया जैसे:- नज़र,असर,अगर,मगर,खबर। और काफिया हर लाइन में एक जैसी जगह पे ही लिखा जाता है, अभी आप आगे पढ़ेंगे example के साथ।
ग़ज़ल के सिर्फ पहले शेर में दोनों लाइन में काफिया होते है बाकी सभी लाइन्स में पहली लाइन खाली और दूसरी लाइन में काफिया होता है,
रदीफ (radeef)
रदीफ, काफिया के बाद आने वाले लफ्ज़ को रदीफ कहते हैं। जो कि हर लाइन में एक जैसा रहता है। जैसे मैंने ऊपर बताया था, अगर नज़र काफिया है तो नज़र में, खबर में, दोनो में (में) एक जैसा है जो कि रदीफ है और नज़र, खबर काफिया।
अब हम एक नज़्म देखते हैं जो काफिया के साथ लिखी गई हो; नज़्म कैसे लिखें? nazm kaise likhen?
कच्चे मकानों सा ढह गया बाजूद मेरा,
घर की दीवारें महेज़ इस्तिहार लगाने के काम आईं।
जो जलाई थी शम्माएं हमने रूखे तन्हाई के वास्ते,
वो गैरों के घर का अंधेरा मिटाने के काम आईं।
जानिब-ए-मंज़िल को चले थे रास्ता ही खो बैठे हम,
दामन को अपने ही आंसुओं से धो बैठे हम।
खलवत में उठते हैं सवाल कई जबाव मिलता है कहा,
भूलने चले थे दर्द सभी , दर्दों के ही हो बैठे हम।
हर आहट से डर लगता है बस मए-कदे में दिल लगता है,
कोई आए ना अब इधर हाल छुपाना अब मुश्किल लगता है।
बात बाद में करो दर्द पहले दो अए मेरे चाहने वालों,
अब हमे कोई भी ना मेरे उजड़े दयार के काबिल लगता है।
अब इसकी सभी 4 लाइन में काफिया बदला है पहले
लगाने के काम आई,
मिटाने के काम आई
अगली 2 लाइन में
खो बैठे हम
धो बैठे हम
ऐसे ही बाकी सभी लाइन में भी ।
एक और देखते है अच्छी से समझने के लिए || नज़्म कैसे लिखें? nazm kaise likhen?
उसने मेरी जिंदगी में दखल दी
मुझे हुनर दिया मुझे अक्ल दी
मुझे दिया जहाँ मुझे उम्मीद दी
मुझे शोहरत दी मुझे हर चीज दी
अब वही सब बेमतलब है वही सब अधूरा है
बचा है सिर्फ एक खाब करना जो अब पूरा है
सोच कर मैं बैठा था,मैं उसके ग़ुमान मे रहता था
वो अक्स था या दारिया था जो मुझमे बहता था
उस ही दरिया का अब किनारा नहीं
अब कोई मेरा सहारा नहीं
तुझसे मोहबात थी तो हर दर्द साहा
अब तेरा कोई गम गवारा नहीं
मिटा दिए तूने निशां मिटा दिया हर राज़ है
जो थी तेरी जगह वो जगह खाली आज है
जो कही थी आखिरी दफा बात तेरी वो याद है
मैं आज कहता हूँ तेरे बिन दिल बहोत उदास है
इस उदासी की भी एक प्यास है
तेरे आने की आस है
तेरे लिए मैंने कुछ नहीं मेरे लिए तू खाश है
अब एक बात तो मुझको बता सही
तू अभी भी वही है की नहीं
तू अभी भी वही है की नहीं
तू बदल भी जाए तो गम नहीं
तेरी यादो के लम्हे भी तो कम नहीं
मगर याद करके रोना चाहूं
फिर से तेरा होना चाहूं
एक बार फिर से मुझे अपना ले ना
दिल मे कही छुपा ले ना
तुझे दूं मोहबत तुझे दूं चाहत
तेरी ही मैं करूं इबादत
ना हो कोई काम मेरा बिना तेरी इजाज़त
मगर इजाजत मांगने से पहले मेरि एक फ़रियाद है
सबसे पहले तू है बाकि सब तेरे बाद है
कुछ भी नहीं बिना तेरे सब कुछ बर्बाद है
आ जाओ ना दिल बहोत उदास है
आ जाओ ना दिल बहोत उदास है
आ जाओ ना दिल बहोत उदास है
2 तरीक़ा
इसमें काफिया रदीफ होना ज़रूरी नहीं होता और है हम अपनी बात को ख़त्म करने के लिए कितनी भी लाइन ले सकते है जैसा की ग़ज़ल में हमे एक शेर में पूरी बात खत्म करने होती है मगर यह नज़्म में ऐसा नहीं है आप चाहे जितना उतनी लाइन्स ले सकते हैं। जैसे:-
शाकी के पैमाने में जाम नहीं कौसर है
जो दिल जलों के दिल को दिल बनती है
मैकशो को गुमान रहता है खुद पे
दिल टूटे का ये साथी बनती है
किसी के सिर चढ़ के शोर करती है
किसी की नजरों से लाली बनके छलकती है
तो कभी कभी मस्जिद को जाए कदम पलट जाते हैं
तो कभी इस के चक्कर में रुख़ भी नहीं देखते
पियाला हाथो में हो तो लोग खुद को बुलंद समझते हैं
अपनी शनशाई में मख़मूर रहते हैं
मैकशी के नए नए इंतजाम करते है महफ़िल सजाते हैं
हुक्के के कश लगाते है
तवायफों का नाच देखते है पियाले से पियला खंकाते हैं
और तो कभी उसे रख के सिर पे खुद झूमने लगा जाते है
कोई होश नहीं रहता दुनिया जहान का इनको
ये तो बस खुद की धुन में धुत रहते हैं ।
अब देखिए मैंने शराब पे लिखा और हर लाइन उसके ही ऊपर थी सिर्फ शराब से जुड़ी बातें और ना किसी भी लाइन में कोई काफिया या रदीफ तो आप लोग भी लिख सकते हैं और बहुत खुबसरत लिख सकते है। नज़्म कैसे लिखें? nazm kaise likhen?
शुक्रिया!
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