
hindi gazal-किसी सूफ़ी कलाम सी तेरी परछाई। gazal
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किसी सूफ़ी कलाम सी तेरी परछाई।
जुल्फ़ जैसे ग़ज़ल तबस्सुम जैसे रूबाई।
वा-खुदा मेरा ईमान खुदा है कसम से,
फिर मैं क्या करूं खुद हैरान है खुदाई।
तुझसे है पहर तुझसे ही मेरी है सहर,
है तुझसे ही ज़ख्म तुझे ही मिले दवाई।
छुप-छुप के देखती है नज़र तेरी हमें, hindi gazal
हो कभी रु-बा-रु सांसों की हो मिलाई।
पहन लूं तुझे और उतारू ना ता-उम्र,
मेरे हर हिस्से में तू ही तू दे दिखाई।
मीलों सफ़र जैसा तेरे दिल का ठिकाना,
ना आरजू की आस ना मिले अब रिहाई। romantic gazal
एक हसरत थी मेरे दिल में तुझे छूने की,
देख तेरी पाकीज़गी वो भी हमने बुझाई।
एक तस्वीर जो है तेरी मेरे ख्यालों में,
एक तस्वीर अब जो हमने है तेरी बनाई।
उसमें तू काफिर कोई दिलनाशी सा है,
मेरी तस्वीर में है जरा सा तू हरजाई।
बर्क-बर्क है तेरे लहजे में तेरे अंदाज में,
कलम मेरी बेताब भरने को सिहाई।
डर ते रहे उम्र भर साहब बदाकाशी से,
ईमान भी लुटा जब नजर उसने पिलाई।
कोई उम्मीद नही है साथ के उसकी हमे,
जर्रा-जर्रा है उसकी ही जलवा-नुमाई।
खुदा मन नहीं तेरी खुदाई को मानने का,
एक शख्स के लिए कितनी करूं दुहाई।
रख जिक्र की फ़िक्र है तू ही तू है मौजूद,
तुझ पे ही तो हमने हस्ती अपनी लुटाई।
नहीं थी ख़बर संजीदगी की रूह में,
डुबाएगी हमें कुछ पल की ये सवाई।
कौन से पीर-ओ-मुर्शिद का पहनू तबीज़,
कुरान-नमाज़ कौन-कौन सी करूं पढ़ाई।
एक तू बस तू बने मेरा और क्या चाहूं,
करने को तैयार हूं मैं लाख मसाई।
ज़ुबान पे नाम तेरा नज़र में इंतज़ार,
एक लम्हे में आके है सनम तू समाई।
दुपट्टे के सरकने से घवरा के संभालना,
बहुत याद आ रही है नज़रों की गिराई।
या मौला नही होता अब सब्र जरा भी,
कर मेरा फ़ैसला कर मेरी भी सुनवाई।
सबनम सी गिरती है तेरे नज़रों से बर्क, romantic gazal
वो अदब की रूहानियत वो तेरी हयाई।
मुझे कहां मंजूर था दिल को बेताब होना, sad gazal
इसकी ख्वाहिश भी तो तूने ही चुराई।
मैं हर रोज करूं जंग मेरी उलझनों से,
कोई राह निकले हो तुझ तक रसाई।
क्या तू भी खो गया, इस दुनियादारी में,
या मैं ही खामोश, देता नही तुझे सुनाई।
ख़ुद ज़िम्मेदार अपनी, रात के रूठने का,
किस तर्क से कहूं, तूने नीद मेरी है चुराई।
तुझे तो खबर है, है ना मेरे हाल की,
फिर क्यूं नहीं करता तू वफ़ा से वफाई।
बर्बाद हुए इतिहास बने इश्क़ में फना होके,
एक मैं हूं के मेरे इश्क़ वो छाई है बे-नवाई।
एक भरम को मेरी पनहा तो से ज़रा,
इश्क़ नहीं है मुझसे या है कोई परसाई।
मेरे इश्क़ की इंतेहा की बात ही क्या,
लकीर मिटा दी हमने बनी बनाई।
तुझे याद कर-कर के क्या-क्या ना की,
ना किया मगर रुसवा न की बुराई।
कुर्बान कदम-ए-यार पे कतरा – कतरा मेरा,
नज़र आए यार में शान- ए- किब्रियाई।
तेरे दर का ना हुआ, हुआ मैं दर – बदर,
कभी बनवाया तमाशा कभी खुद- नुमाईं।
उनसे मोहब्बत के लिए बना सवाली फैलाई,
झोली देख जिसे लगा हो शाह-ओ-गदाई।
बस्फ की सदाए सुनी कलम से बेहिसाब,
लेकर मंशा उसकी की जो ग़ज़ल सराई। sad gazal
मेरे सजदे को जगह कम नही दर-ए-खुदा की
फक़त दिल है अभी भी मंजिल-ए-राही।
पढ़ मेरी ग़ज़ल क्यों हो गुमसुम से,
कलम मेरी है, मगर तेरी ही है ये लिखाई।
बेचैनी लेकर कब तक फिरू मारा – मारा,
अब तो ख़त्म कर ये छुपन – छुपाई।
एक बचा था जीने को ख्याल तेरा , होते ही,
तू किसी और का लगे वो वजह भी गवाई।
शायद आईना नही देखता जो करता है सवाल
क्यों है मुझे उस से इतनी सिफ़ाई।
बेचैन ख्याल हैं मेरी शब-ए-गम के,
ये कैसी है उनकी रेहान से अस्नाई। hindi gazal

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किसी सूफ़ी कलाम सी तेरी परछाई
ढलती हुई सी रात ने बात ख़राब कर दी।
जब मेरा मुंसिफ ही मेरा क़ातिल हो।
हमने भी बेशुमार पी है ! नज़रों के प्यालों से।
तेरे हुस्न की तस्वीरों का आखिर …
इंतेजाम सब कर लिए सोने के अब नींद भी आ जाये तो करम होगा।
जिसे बनना ही ना हो आख़िर हमसफ़र किसी का।
क्या सितम है के उन्हें नजरें मिलाना भी नही आता।
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